Shodashi - An Overview
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Shodashi’s mantra encourages self-self-discipline and mindfulness. By chanting this mantra, devotees cultivate bigger Regulate about their views and steps, bringing about a far more mindful and purposeful method of everyday living. This reward supports own advancement and self-self-discipline.
इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?
चक्रेश्या पुर-सुन्दरीति जगति प्रख्यातयासङ्गतं
कन्दर्पे शान्तदर्पे त्रिनयननयनज्योतिषा देववृन्दैः
Shiva after the Dying of Sati experienced entered into a deep meditation. With no his Vitality no generation was feasible and this resulted in an imbalance during the universe. To bring him out of his deep meditation, Sati took birth as Parvati.
The Mahavidya Shodashi Mantra can be a strong Instrument for anyone looking for harmony in personal associations, Inventive inspiration, and guidance in spiritual pursuits. Regular chanting fosters psychological healing, improves instinct, and will help devotees access greater knowledge.
पुष्पाधिवास विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि
Shodashi Goddess has become the dasa Mahavidyas – the 10 goddesses of knowledge. Her title implies that she is the goddess who is often 16 yrs old. Origin of Goddess Shodashi occurs just after Shiva burning Kamdev into ashes for disturbing his meditation.
कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।
श्रींमन्त्रार्थस्वरूपा श्रितजनदुरितध्वान्तहन्त्री शरण्या
Goddess Tripura Sundari can be depicted like a maiden carrying excellent scarlet habiliments, dark and prolonged hair flows and is totally adorned with jewels and garlands.
संकष्टहर या संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि – sankashti read more ganesh chaturthi
श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।